Friday 3 April 2020

Coronavirus: हवा में भी मौजूद हो सकता है कोरोना वायरस, नई स्टडी में फिर सामने आई यह बात

कोरोना वायरस संक्रमण फैलने को लेकर शुरुआत से यही कहा जा रहा है कि यह सामान्यत: हवा के माध्यम से नहीं फैलता, बल्कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने के दौरान निकले ड्रॉपलेट्स से फैल सकता है। ये ड्रॉपलेट्स यानी द्रव कण हवा के साथ सामने वाले व्यक्ति को संक्रमित कर सकते हैं। अब एक नई स्टडी में फिर से इस बात की पुष्टि हुई है कि यह वायरस हवा में भी घूमता हुआ मौजूद हो सकता है। जिस कमरे में कोरोना संक्रमित व्यक्ति ठहरा हो, उसके जाने के बाद भी हवा में कोरोना वायरस मौजूद हो सकते हैं। आइए जानते हैं और क्या कुछ सामने आया इस स्टडी में: 
डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस की हवा में मौजूदगी को लेकर अमेरिका की नेब्रास्का यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह स्टडी की। इसमें इस बात की पुष्टि हुई है कि मरीज के कमरे से जाने के बाद भी कमरे की हवा में वायरस की मौजूदगी हो सकती है। मरीज के जाने के कई घंटे बाद भी कमरे के वातावरण में काफी मात्रा में वायरस हो सकता है। 
शोधकर्ताओं का कहना है कि अस्पताल के जिस वार्ड में या कमरे में कोरोना के मरीज रह रहे हैं, उसके आसपास, कॉरिडोर वगैरह की हवा में भी वायरस हो सकते हैं। इस स्टडी में बताया गया है कि कोरोना संक्रमितों का इलाज कर रहे डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को वायरस से बचने के लिए प्रोटेक्टिव शूट, मास्क, दस्ताने वगैरह कितने जरूरी हैं।
नेब्रास्का यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस स्टडी में उन्होंने 11 मरीजों के कमरों को सैंपल के तौर पर लिया था और पाया कि इन कमरों के भीतर और बाहर की हवा में कोरोना वायरस मौजूद हैं। इस स्टडी को लीड करने वाले संक्रमित रोग विशेषज्ञ और जेम्स लॉलर का कहना था कि हमें जो रिजल्ट मिला है, वह हमारे संदेह की पुष्टि करते हैं। 
जेम्स लॉलर का कहना था कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के कमरे में निगेटिव एयरफ्लो होना जरूरी है। भले ही मरीजों की संख्या कितनी ही अधिक ही क्यों न हो, यह जरूरी है। हालांकि चिकित्सा विशेषज्ञ फिलहाल कोई ऐसा आंकड़ा नहीं दे पाए हैं कि अबतक संक्रमित लोगों में से कितने मरीज हवा, ड्रॉपलेट्स, संक्रमित सतह या फिर संक्रमित के संपर्क में आने से इस वायरस की चपेट में आए। 
ऐसे समय में जब कोरोना का संक्रमण हर दिन बढ़ता जा रहा है, अस्पतालों में मरीजों का इलाज कर रहे चिकित्सक और अन्य स्वास्थ्यकर्मी पीपीई यानी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट की कमी से जूझ रहे हैं। दुनियाभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर भी कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। ऐसे में उनके लिए पीपीई बहुत ही जरूरी है

इससे पहले भी कुछ स्टडी में ये बात सामने आई थी कि कोरोना वायरस सिर्फ मरीज से ही नहीं फैलते, बल्कि ये कई जगहों की सतह पर भी मौजूद हो सकते हैं। बीबीसी की रिपोर्ट में भी विशेषज्ञ ये बता चुके हैं कि मेटल या फिर प्लास्टिक की सतह पर कोरोना वायरस दो से तीन दिनों तक रह सकता है और ऐसे में इन सतहों को छूने पर भी लोग संक्रमित हो सकते हैं। 

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